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रहस्यमाई चश्मा भाग - 64




वैसे भी डॉ रणदीप झा के व्यक्तीगत व्यवहार एव उनकी यश कीर्ति कि पताका दूर दूर तक फैली हुई थी अब उनके ख्याति में आसमान की ऊंचाइयों को छूने जा रही थी पुनर्निर्मित अस्पताल के उद्घाटन कि तिथि एव समय आ चुका था तिथि थी उन्नीस नवम्बर एव समय सांय पांच बजे दूर दूर से आने वाले अतिथि एक दो दिन पहले से आ चुके थे डॉ रणदीप झा के मित्र डॉक्टर भी देश के विभिन्न शहरों से आये थे उद्घाटन होना था सुयश एव मंगलम चौधरीं के हाथों मंगलम चौधरीं एव सुयश एक साथ डॉ रनडीप के नवनिर्मित अस्पताल के उद्घाटन के लिए निकले और ज्यो ही अस्पताल पर पहुंचे उनका स्वागत बाजे गाजे एव पुष्प वर्षा के साथ किया गया,,,


डॉ रणदीप झा ने स्वंय अगुवानी किया और निर्धारित आसान पर प्रतिष्टित करते हुये औपचारिक स्वागत के बाद स्वंय स्वागत भाषण देने लगा अपने मुख्य उद्बोधन में डॉ रणदीप ने कहा कि यह एक विचित्र संयोग का सहयोग है जिसने दरभंगा वासियों को यह शुभअवसर प्रदान किया है संयोग इसलिये कि जाने कौन सी वह घड़ी थी जब आदरणीय मंगलम चौधरीं के एक चश्मे के लिए सुयश जैसे नवजवान ने अपना दाहिना हाथ गंवा दिया जिसके कारण झंझरपुर से दरभंगा मात्र पचास किलोमीटर की दूरी तक मंगलम चौधरीं साहब को सुयश को लाने में दो घण्टे का समय लग गया मेरे अस्पताल तक पहुचने तक सुयश के शरीर से बहुत खून निकल चुका था बहुत कोशिशों के चौधरीं साहब के खून से एव ईश्वर के आशीर्वाद से सुयश को बचा पाना सम्भव हुआ,,,,


 लेकिन दाहिना हाथ काटना पड़ा जब सुयश स्वस्थ हुआ तब मंगलम चौधरीं जी ने अस्पताल को उच्चीकृत सुविधाओं से युक्त विस्तारित करने की अपनी मंशा जताई एव धन उपलब्ध कराया जो करोड़ो में है जिसके कारण आजादी के सिर्फ अठ्ठारह वर्षो बाद ही दरभंगा जैसे पिछड़े इलाके में इतना बड़ा आधुनिक सर्व सुविधाओं युक्त अस्पताल का होना सम्भव हो सका जिसके लिए सुयश का चौधरीं साहब से मिलना सुयश का दुर्घनाग्रस्त होना मेरे अस्पताल में आना आदि संयोग जुड़े है अतः मैं व्यक्तिगत तौर पर मंगलम चौधरीं साहब का आभारी हूँ कि उनके ही सहयोग आशीर्वाद से मिथिलांचल के लिए बड़ी स्वास्थ सुविधएं उपलब्ध हो सकी,,,,,


  डॉ रणदीप झा ने स्वागत भाषण समाप्त किया और अस्पताल के उद्धघाटन के लिए सुयश और मंगलम चौधरीं को आमंत्रित किया सुयश एवं मंगलम चौधरीं ने डॉ रणदीप चौधरीं के अस्पताल का उद्घाटन किया चौधरीं साहब ने अपने उद्बोधन में मात्र इतना ही कहा मिथिलांचल एव देश की जनता के लिए जो कुछ भी सम्भव हो सकेगा जीवन पर्यंत करने कि कोशिश करता रहूंगा इसमें मेरा मात्र संकल्प सम्मिलित है शेष ईश्वर कि कृपा है डॉ रणदीप जैसे होनहार मेहनती इंसान जिस भी समाज मे होंगे ईश्वर उस समाज के विकास के लिए नई संभावनाएं देगा उंसे पूर्ण करेगा मैं डॉ रणदीप झा का देश एव मिथिलांचल गौरव के रूप में सम्माननित करते हुए अभिमानित हूँ,,,,


 मैं व्यक्तिगत रूप से मिथिलांचल एव देश के नौजवानों से अनुरोध करता हूँ कि वे डॉ रणदीप झा से प्रेरणा लेते हुए समाज परिवार एव राष्ट्रीय विकास में महत्वपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करे मैं चाहता हूँ हर नौजवान रणदीप बने हर घर मे रणदीप झा जैसा युवा नौजवान हो मंगलम चौधरीं के बाद सिंद्धान्त ने डॉ रणदीप को अपने सम्बोधन के द्वारा बधाई देते हुये कहा मैं बाबूजी के अन्य कार्यो में व्यस्त रहने के कारण सीधे तौर पर तो डॉ रणदीप के अस्पताल से नही जुड़ पाया था लेकिन भावनात्मक रूप से सदैव जुड़ा रहा हूँ क्योकि डॉ रणदीप का अस्पताल मेरे लिए साक्षात ईश्वर का मंदिर है जिसके आशीर्वाद स्नेह से मेरे छोटे भाई सुयश के प्राणों की रक्षा सम्भव हो सकी,,,,


 डॉ रणदीप का यह अस्पताल चौधरीं परिवार के लिए सदा ही आस्था अभिमान का केंद्र बना रहेगा जब सिंद्धान्त बोल रहा था मंगलम चौधरीं उसके शारीशरीक हाव भाव एव चेहरे को एक तक निहार रहे थे जैसे वह किसी खोई हुई मूल्यवान वस्तु को सिंद्धान्त में खोज रहे हो और वह मिल गयी हो समारोह समाप्त हुआ डॉ रणदीप ने बहुत स्वंय मंगलम चौधरीं सिंद्धान्त को विधा किया साथ ही साथ सभी विशिष्ट अतिथियों को भी ।मंगलम चौदरी सिंद्धान्त सुयश हवेली पहुंचे मंगलम चौधरीं ने सिंद्धान्त से कहा बेटे तुम अपने छोटे भाई को इसके प्रायास के लिए बधाई दो जिसने मेरे निर्देशो का अक्षरसः पालन करते हुए डॉ रणदीप के अस्पताल को उच्चीकृत करते हुए निर्धारित ढेड़ वर्ष के समय से तीन माह पूर्व ही पूरा करा दिया जिसमें कठिन कार्य था,,,,,


विदेशों से मशीनों का मंगाना लेकिन सुयश कि मेहनत रंग लाई सिंद्धान्त ने तुरंत जबाब दिया जिसे आपका आशीर्वाद सानिध्य प्राप्त हो वह कुछ भी असंभव को सम्भव कर सकता है सुयश और मैंने निश्चित रूप से अपने पूर्व जन्मों में कुछ अच्छे कर्म किये थे जिससे कि आपका सानिध्य संरक्षण एव शिक्षा सांस्कार मीले जो जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है मंगलम चौधरीं सिंद्धान्त जबसे उनसे मिलने आया था तबसे वह सिंद्धान्त कि भवनाओ मनोदशा को सुयश के परिपेक्ष्य में बिभिन्न तौर तरीकों माध्यमो से परखने कि कोशिश कर रहे थे उन्हें इस बात का धीरे धीरे एहसास संतोष एव विश्वास होता जा रहा था कि सिंद्धान्त और सुयश में सामंजस्य बना रहेगा,,,,



और दोनों किसी भी मुश्किलों का सामना मिल जुल कर करने में सक्षम है दूसरे दिन सिंद्धान्त ने मंगलम चौधरीं से कहा बाबूजी मिल मजदूरों में बगावत फैल चुकी है जिसका नेतृत्व कौन कर रहा है मैं कैसे बता सकता मंगलम चौधरीं ने सिंद्धान्त के झिझक को दूर करते खुद बोले मैं जानता हूँ मुझे तुम्हारे ही भेजे आदमी जो मेरी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में है ने बताया है वह है तुम्हे जन्म देने वाले पिता नत्थू मैंने तो पहले ही कहा था कि खून के रिश्तो कि संवेदना बहुत गहरी होती है और जब भी अवसर आये तूफान का रूप ले लेती हैं मैं तुम्हे एक प्रस्ताव देता हूँ,,,,,


 सुयश और तुम दोनों ही हमारे दो सगे बेटे ही हो मैं तुम्हे और सुयश को अपनी आधी आधी मिले सम्पत्ति दे देता हूँ यदि तुम्हारा अपना खून नत्थु इस बात पर खुश रहे तो तुम उनके साथ अपने बटवारे के बाद अपने साम्राज्य का विस्तार करो और सुयश को मेरे साथ क्योकि अभी तक सुयश का अपना कोई है ही नही मेरे अलावा और माँ थी तो उसका पता नही जब इसका कोई अपना मिल जाएगा तब देखा जाएगा तुम जब भी अब जाओगे नत्थू जी के समक्ष यह प्रस्ताव रखोगे सिंद्धान्त को भी लगा की चौधरीं साहब गलत क्या कह रहे है उसने कुछ कहा नही और चुप रहना ही उचित समझा चौधरीं साहब समझ गए कि मौन स्वीकार लक्षणम ।


जारी है





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2 Comments

Babita patel

05-Sep-2023 12:31 PM

Nice

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Varsha_Upadhyay

04-Sep-2023 09:32 PM

V nice 👍🏼

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